Friday 28 March 2014

हीरे का कारीगर …

     माणिक लाल जी की अस्वस्थता के बाद जब उनके बेटे, अनमोल ने दुकान में पदार्पण किया तो उनकी दुकान की कायापलट की प्रक्रिया शुरू हो गयी । पुराने ढर्रे की दुकान को अनमोल ने भव्य शो-रुम में तब्दील करने की जैसे मुहीम ही चला दी ! दुकान की हर चीज बदल कर नए ढंग की करने की धुन सवार हो गयी अनमोल पर । किशोर जी, मणिक लाल के पुराने कारीगर थे । हर ग्राहक का खास कहना होता था कि हीरे को तराश कर उनके गहनों को बनाने का काम सिर्फ किशोर जी ही करें । 
     किशोर जी दुकान के इस नये कलेवर को देख कर हर्ष महसूस कर रहे थे । युवा जोश के साथ ताल से ताल मिलाने को वो बेताब थे, किंतु अनमोल के मन में तो कुछ और ही चल रहा था | जैसे उसे दुकान की हर पुरानी चीज खटक रही थी, उसी तरह से जल्दी ही कर्मचारियों की भी बारी आ गयी | पुराने सेल्स-मैन हटाकर, उसने सुन्दर और आकर्षक लड़कियों को रख लिया । अपनी बूढ़ी मगर तेज़ और अनुभवी नज़र से जो हीरे और सोने की परख दूर से ही कर लेता था वही कारीगर भाँप गया कि अगला नम्बर उसका है । 
     एक रोज किशोर जी को अनमोल ने बुलाया | अनमोल :- "चाचा ! आप क्या देखते हो ? देखो ग्राहक ने वापस भेजा है हार ..!" हार देखते ही किशोर जी पहचान गए थे कि ये तो नये कारीगर के हाथ का काम है पर ग्राहक के सामने वो कुछ न बोले और चुपचाप हार लेकर गए और कुछ देर बाद ही ग्राहक के कहे अनुसार उसे ठीक करके दे दिया । उनकी भलमनसाहत और कार्यकुशलता, अनमोल पर प्रभावहीन ही रही क्योंकि उसके अंतर में तो बदलाव की धुन, डट के बैठ चुकी थी ...कुछ दिनों के बाद वो बहाना तलाशने लगा पर किशोर जी की निपुणता और कर्मठता उसे कोई मौका ना दे रही थी | आखिर जब उससे न रहा गया तो एक दिन बोल ही दिया :- "चाचा मैं सोच रहा हूँ .. कि आप कुछ दिन आराम करो ! .. मेरा मतलब.....!” किशोर जी सुनते ही मुस्कुरा कर बोले :- "जौहरी का कारीगर हूँ .. इतनी समझ तो है कि बिन कहे मतलब समझ जाऊं, सेठ जी ! .. मैं कल से ना आउँगा..पर आज शाम तक काम कर लूँ जिससे जो काम हाथ में लिया, पूरा कर सकूँ !" कहते हुये किशोर जी अपने काम में जतन से लग गए | कुछ ही देर में हाथ से हार निकाल कर उन्होंने दे दिया और चले गए । 
     कुछ दिन गुजरे ! पुराने ग्राहकों का मन दुकान के काम से उतरने लगा, वो नये शो रुम में अपनी नज़र इधर-उधर घुमाते और आखिर पूछ ही लेते – ‘किशोर जी भाई नही दिख रहे !’ अनमोल उनकी अस्वस्थता का बहाना बता देता |
     गोमती देवी माणिक भाई की दुकान के पुराने ग्राहकों में थीं । किशोर और माणिक को न पा कर वो पास के एक दूसरे शो-रूम पर गईं । उन्होने उधर प्रश्न पूछा :- "किशोर भाई जी किधर हैं जो मणिक के यहाँ काम करते थे ?" उनको काम से निकालने की बात सुन कर गोमती देवी को आश्चर्य और निराशा हुई । 
     कुछ हफ़्तों के बाद  ....गोमती देवी जब समन्दर किनारे अपनी नातिन के साथ घूमने निकली तो नातिन उनका हाथ छुड़ा कर एक गुब्बारे वाले के पीछे भाग कर गई । गुब्बारे वाले ने बच्ची को दुलराते हुये एक गुब्बारा फुला कर दिया । ज्यूँ ही गोमती देवी उधर पँहुची, तो देख कर चकित होते हुये बोली :- "अरे ! किशोर भाई ! आप .. इधर .. और ये क्या ?” किशोर जी ने सहज भाव से नमस्कार करते हुये मुस्कुरा कर जवाब दिया :- "काम कर रहा हूँ !" गोमती देवी ने पुन: प्रश्नवाचक दृष्टी डाली उनपर, तो उनके मौन प्रश्न का किशोर जी ने जवाब दिया :- "हीरा तराशना ही तो मेरा काम था .. चाहे वो करुँ .. या इधर....!” बच्ची के सिर पर हाथ फेरते हुये कहा .....तभी पीछे से एक आवाज आई तो पलट कर देखा और कहने लगे :- "बच्चों की मुस्कान भी खरा सोना है दीदी .. और ये चमकते मोती से दाने रोज देखता हूँ .. अभी भी अपना काम उसी नीयत से करता हूँ.....|” थोड़ी देर तक वो कहते रहे और गोमती देवी बस सुनती रहीं ....फिर वो अचानक बोले :- “अच्छा ग्राहक बुला रहा है .....चलता हूँ !” कहते हुये किशोर जी तो चले गए पर पीछे रह गयी, उनकी अनमोल दर्शन से भरी मूल्यवान बातें ………जो गोमती देवी मन ही मन दोहराती रहीं और उसी रात उनकी डायरी के एक पन्ने पर चंद पंक्तियाँ बन कर उभर आईं  – 

‘हीरे की बनावट पर अब प्रश्न चिन्ह आया है, 
पुराने कारीगर का हुनर, नजर नही आया है ! 
सेठ के लड़के ने उसे पुराना कह कर हटाया, 
अब वो बाजार में गुब्बारे बेच कर हर्षाया है ! 
पूछा उससे मैने, कि इसमें तुम क्या पाते हो ? 
जवाब दिया : नन्ही मुस्कानों ने सब भुलाया है । 
बच्चे का सिर सहलाते फिर कहने लगा वो ! 
हीरे से ज्यादा चमक को मैने अब अपनाया है । 
देता गुब्बारा कुछ पैसे में ही, हवा भरके इनको, 
मुझे मेरी छाती में साँस का पता लग पाया है । 
क्यूँ पूछते हो आप कि क्या मिलता है मुझे ? 
हीरा तराशने में कब सच्चा सुख मैंने पाया है ! 
नही पूजता मैं इसका-उसका खुदा कभी भी ! 
देखो ! वो पास आता, मुझे खुदा नजर आया है । 
और भी हैं बातें फुर्सत में आप कर लेना कभी ! 
मेरा वक्त हो चला, बच्चों ने मुझे बुलाया है । 
गुब्बारे ले लो …! कहते हुए बढ़ गया वो आगे, 
जोश से जिन्दगी को जीता इंसान मैंने पाया है !'





                                                                                : अनुराग त्रिवेदी - एहसास