Saturday 27 April 2013

उम्र का सफ़र ...!


पुराने दरख्त हमें सिखाते हैं, 
कैसे बुजुर्ग सवाल खूंटी में टांग आते हैं !
रहती नही फिक्र उन्हें फिर, 
नींद की तगड़ी खुराक ले, सुबह उठ जाते हैं । 
कैसे वो अपने बुजूर्ग जीते !
और हम जीते जी जिन्दगी नरक बनाते हैं । 
हैरत हुई, सुन कर मुझे !
पर सच है ऐसे ही नही वो बुजुर्ग हो जाते हैं । 
दिन मशक्कत से गुजारते हैं, 
रातों को ख्वाब फिर वो नया सा सजाते है । 
क्या देखा है तुमने उन्हे कभी ? 
घर में आते ही झुर्रियों से मुस्कुराते हैं । 
खिल पड़ते पोपले गाल उनके, 
नंदू को कंधे पर बिठा घोड़ा बन जाते हैं । 
आज के नये दौर में हमें, 
ऐसे भरे पूरे परिवार किधर दिख पाते हैं ?
घर के सदस्य घर में ही, 
सीमांकन में बँट, कट कर रह जाते है । 
एक को दूजे के लिये फुर्सत नही, 
बस एक दूजे को खरी खोटी सुनाते हैं । 
वो बूढ़ा दरख्त कहता है ! 
मनुष्य ही कलयुग को निमंत्रण दिये जाते हैं । 
खुब हुआ तो देखिये उन्हे ! 
इधर-उधर भीड़ लगा भंडारे/लंगर लगाते हैं । 
ये नेक दिल श्रीमान ऐसे हैं ! 
जो गरीब की बोटी,बेटी नोच हिसाब में चढ़वाते हैं । 
तो कहो ... ! क्या है सवाल ?
हम एक टहनी झुकाते, और न्यौता तुम्हे दिये जाते हैं । 
टांग दो सवाल वो सारे के सारे, 
जो ज़ेहन में तुम्हारे अपलक अनवरत आते है ।