Monday 8 October 2012

कोमल हृदय परिन्दा






 रह रह छाती फोड़ निकलता है , दिल
 आखिर कैसे उड़ेगा ???
 कोमल सा हृदय परिन्दा है , दिल
 टूटी टाँगों पे कैसे ठहरेगा ??
 दूर तक खामोशियाँ फैली....
 किससे दर्द अपना कहेगा ???
 रह रह छाती फोड़ निकलता है , दिल
 कैसे उड़ेगा...?
 हवा के ज़ोर से टूटी गर्दन ,
 परों के ज़ोर पे क्या खाक उडेगा ....? 
 इसने समझा उसे, ..... उसने समझा उसे...
 बेकार क्यूँ हिसाब रखेगा..? 
 टूटे - झूठे अरमानों - वादों की ,
 यादों की टहनियों पे जा बैठेगा ....
 रह रह छाती फोड़ निकलता है , दिल
 आखिर कैसे उड़ेगा ????
 आखिर कैसे उड़ेगा...???? 
 ..........अनुराग त्रिवेदी "एहसास "



2 comments:

  1. वाह! बहुत सुन्दर.

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  2. bahut sunder anurag ji...aakhir kaise udega....dil..

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