Friday 20 April 2012

खामोश शोले ....

अपने बंकरों में बैठ कंकडों से घर बनाता था ...
प्रिय के हाथ की चूड़ी से सजाता था ...
माँ ने दुआ का ताबीज़ दिया .. उसे पत्थर में बाँध हनुमान बनाता था ...
बहन के दिए रुमाल से अपना घर छुपाता था.. 
दो बुलेट को खड़ा कर, उन्हें बिट्टू -रानू कह बुलाता था .. 
अपने बंकरों में बैठ कंकडों से घर बनाता था 


घात लगाये दुश्मन खड़े थे, पर वो ज़रा न घबराता था...
विस्फोट की धमक एक कंकर भी गिराए 
दुश्मन को नेस्तनाबूत  करने  का हौसला उसे आ जाता था..
वो मतवाला अपने आप में एक दुनिया बनता था.. 


अपने बंकरों में बैठ कंकडों से घर बनाता था 



दुश्मन को टूटी कमर से रेंगता देख 
उसे पानी देने में जरा न हिचकिचाता था...
रहमदिली से इंसानियत के सबक पे भी जिये जाता था.. 
अपने बंकरों में बैठ कंकडों से घर बनाता था 


दुश्मन दुश्मन सिपाही ने उसका घर देखा
उसकी कमजोर बुनियाद उसे लज्जित किये जाता था..   
उसकी आंख मे तैरने लगे सवाल ... आखिर ये लडाई क्यों ?
जवान बोला 
" जब तक तुम्हारी कमर में दम है ..
तुम्हे पता नही घर उजडने का क्या गम है ..! 
समझ जाओ कि कोई कंकर भी न हिले 
वर्ना तुम्हारी लिये कयामत से नही हम कम है ..! 
सच मानो दोस्त मुझे तुमसे रहम दिली है .. 
क्यूँकि दुश्मन के लिबास में जंग तुमने लडी है .. 
तुम्हारे मेरे देश में, नेता के भेष में भेड़ियों की कौम पल रही है ..
ये सिलसिला बदस्तूर यूं ही चलना है 
माँ ने राम और रावण, दोनों को जनना है 
ये तेरे ऊपर, मेरे ऊपर, कि आखिर क्या बनना है ? ""
बस ये जबाब सुन, दुश्मन जवान ने ... 
उसके घर के सामने सिर झुकाया था.. 

अपने बंकरों में बैठ कंकडों से घर बनाता था ....
अपने बंकरों में बैठ कंकडों से घर बनाता था ....